आबरू शाह मुबारक कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का आबरू शाह मुबारक (page 5)
नाम | आबरू शाह मुबारक |
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अंग्रेज़ी नाम | Abroo Shah Mubarak |
जन्म की तारीख | 1685 |
मौत की तिथि | 1733 |
जन्म स्थान | Delhi |
हुस्न पर है ख़ूब-रूयाँ में वफ़ा की ख़ू नहीं
हम नीं सजन सुना है उस शोख़ के दहाँ है
हुआ हूँ दिल सेती बंदा पिया की मेहरबानी का
हमारे साँवले कूँ देख कर जी में जली जामुन
है हमन का शाम कोई ले जा
गुनाहगारों की उज़्र-ख़्वाही हमारे साहिब क़ुबूल कीजे
गरचे इस बुनियाद-ए-हस्ती के अनासिर चार हैं
गली अकेली है प्यारे अँधेरी रातें हैं
फ़जर उठ ख़्वाब सीं गुलशन में जब तुम ने मली अँखियाँ
दुश्मन-ए-जाँ है तिश्ना-ए-ख़ूँ है
दिल्ली के बीच हाए अकेले मरेंगे हम
दिल नीं पकड़ी है यार की सूरत
दिल है तिरे प्यार करने कूँ
देखो तो जान तुम कूँ मनाते हैं कब सेती
देख तू बे-रहम आशिक़ नीं तुझे छोड़ा नहीं
चंचलाहट में तू ममोला है
बहार आई गली की तरह दिल खोल
बढ़े है दिन-ब-दिन तुझ मुख की ताब आहिस्ता आहिस्ता
और वाइज़ के साथ मिल ले शैख़
अगर दिल इश्क़ सीं ग़ाफ़िल रहा है
अगर अँखियों सीं अँखियों को मिलाओगे तो क्या होगा
आया है सुब्ह नींद सूँ उठ रसमसा हुआ
आश्नाई ब-ज़ोर नहिं होती
आशिक़ बिपत के मारे रोते हुए जिधर जाँ
आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है