आबरू शाह मुबारक कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का आबरू शाह मुबारक (page 3)
नाम | आबरू शाह मुबारक |
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अंग्रेज़ी नाम | Abroo Shah Mubarak |
जन्म की तारीख | 1685 |
मौत की तिथि | 1733 |
जन्म स्थान | Delhi |
डर ख़ुदा सीं ख़ूब नईं ये वक़्त-ए-क़त्ल-ए-आम कूँ
दाग़ सीं क्यूँ न दिल उजाला हो
ब्यारे तिरे नयन कूँ आहू कहे जो कोई
बोसे में होंट उल्टा आशिक़ का काट खाया
बोसाँ लबाँ सीं देने कहा कह के फिर गया
ऐ सर्द-मेहर तुझ सीं ख़ूबाँ जहाँ के काँपे
अगर देखे तुम्हारी ज़ुल्फ़ ले डस
अफ़्सोस है कि बख़्त हमारा उलट गया
अब दीन हुआ ज़माना-साज़ी
आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है
आग़ोश सीं सजन के हमन कूँ किया कनार
ज़िंदगानी सराब की सी तरह
ये तिरी दुश्नाम के पीछे हँसी गुलज़ार सी
ये सब्ज़ा और ये आब-ए-रवाँ और अब्र ये गहरा
ये बाव क्या फिरी कि तिरी लट पलट गई
यार रूठा है हम सें मनता नहिं
याद-ए-ख़ुदा कर बंदे यूँ नाहक़ उम्र कूँ खोना क्या
या सजन तर्क-ए-मुलाक़ात करो
उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो
तुम्हारी जब सीं आई हैं सजन दुखने को लाल अँखियाँ
तुम्हारे लोग कहते हैं कमर है
तूफ़ाँ है शैख़ क़हरिया है
तीरा-रंगों के हुआ हक़ में ये तप करना दवा
शौक़ बढ़ता है मिरे दिल का दिल-अफ़गारों के बीच
शब-ए-सियाह हुआ रोज़ ऐ सजन तुझ बिन
सरसों लगा के पाँव तलक दिल हुआ हूँ मैं
साँप सर मार अगर जो जावे मर
सैर-ए-बहार-ए-हुस्न ही अँखियों का काम जान
रता है अबरुवाँ पर हाथ अक्सर लावबाली का
रखे कोई इस तरह के लालची को कब तलक बहला