दिलों के बाब में क्या दख़्ल 'आफ़्ताब-हुसैन'
सो बात फैल गई मुख़्तसर बनाते हुए
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कहाँ किसी पे ये एहसान करने वाला हूँ
ज़रा जो फ़ुर्सत-ए-नज़्ज़ारगी मयस्सर हो
वो सर से पाँव तक है ग़ज़ब से भरा हुआ
कुछ और तरह की मुश्किल में डालने के लिए
किन मंज़रों में मुझ को महकना था 'आफ़्ताब'
हाल हमारा पूछने वाले
कुछ रब्त-ए-ख़ास अस्ल का ज़ाहिर के साथ है
किसी नज़र ने मुझे जाम पर लगाया हुआ है
मुनाफ़िक़त का निसाब पढ़ कर मोहब्बतों की किताब लिखना
कब तक साथ निभाता आख़िर
अस्ल हालत का बयाँ ज़ाहिर के साँचों में नहीं
कब भटक जाए 'आफ़्ताब' हुसैन