ये नुक्ता इक क़िस्सा-गो ने मुझ को समझाया
हर किरदार के अंदर एक कहानी होती है
Faiz Ahmad Faiz
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Habib Jalib
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Gulzar
Wasi Shah
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Jaun Eliya
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हमारा दिल ज़रा उकता गया था घर में रह रह कर
लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की
साथियो अब मुझे रस्ते में उतरना होगा
इक वडेरा कुछ मवेशी ले के बैठा है यहाँ
मैं ख़ुद भी यार तुझे भूलने के हक़ में हूँ
नहीं था ध्यान कोई तोड़ते हुए सिगरेट
परिंदे लड़ ही पड़े जाएदाद पर आख़िर
तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं
इसी लिए हमें एहसास-ए-जुर्म है शायद
किसी ने ख़्वाब में आकर मुझे ये हुक्म दिया
मुझे रोना नहीं आवाज़ भी भारी नहीं करनी
छोड़ कर मुझ को तिरे सहन मैं जा बैठा है