रस्ते ही में हो जाती हैं बातें बस दो-चार
अब तो उन के घर भी जाना कम कम होता है
Gulzar
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Wasi Shah
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(766) Peoples Rate This
मिलता नहीं मुझ को नक़्श अपना मुझ में
वो पास हो के दूर है तो दूर हो के पास
हिसार-अंदर-हिसार
दिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से
कुल आलम-ए-वुजूद कि इक दश्त-ए-नूर था
न जाने कितनी बस्तियाँ उजड़ के रह गईं
मिरी शिकस्त भी थी मेरी ज़ात से मंसूब
शो'ले हैं कहीं तेज़ कहीं हैं मद्धम
ज़िंदान-ए-सुब्ह-ओ-शाम में तू भी है मैं भी हूँ
मुसाफ़िरत का वलवला सियाहतों का मश्ग़ला
बस इक तसलसुल-ए-तकरार-ए-क़ुर्ब-ओ-दूरी था
बर्बाद सुकून-दर-ओ-दीवार न हो