इक टीस कलेजे को मसलती ही रही
इक सोत ख़यालों में उबलती ही रही
तारीक रहा जादा-ए-हस्ती लेकिन
इक शम्अ मिरे सीने में जलती ही रही
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हल्की हल्की फुवार के दौरान में
लुत्फ़ ले ले के पिए हैं क़दह-ए-ग़म क्या क्या
इलाही उस को मोहब्बत से कुछ तअल्लुक़ है
फुवार, अब्र, परिंदों के गीत, मस्त हवा
गीत के हाथों लुटा जाता हूँ मैं
शबाब-ए-दर्द मिरी ज़िंदगी की सुब्ह सही
सुब्ह की तनवीर बन कर आई वो नाज़ुक-ख़िराम
फ़ज़ा है नूर की बारिश से सीम-गूँ इस वक़्त
फिरती हूँ लिए सोज़-ए-हयात आँखों में
तैरे गीतों की लय अरे तौबा
इधर दिमाग़ हैं साकित दिलों को सकता है
आसूदगी-ए-ज़ात नहीं हो सकती