किसी ख़याल में मदहोश जा रहा था मैं
अँधेरी रात थी तारीकियों की बारिश थी
निकल गई कोई दोशीज़ा दिल को छूती हुई
ये मेरे साज़-ए-जवानी की पहली लर्ज़िश थी
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गीत के हाथों लुटा जाता हूँ मैं
जो पूछता है कोई सुर्ख़ क्यूँ हैं आज आँखें
फिरती हूँ लिए सोज़-ए-हयात आँखों में
कर दिया हाफ़िज़े में हश्र बपा
तिरी नाज़ुक और लाँबी उँगलियाँ
जब से मुँह को लग गई 'अख़्तर' मोहब्बत की शराब
चाँदनी, तारे, अब्र के टुकड़े
याद-ए-माज़ी अज़ाब है या-रब
हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
माज़ी की रिवायात में गड़ जाते हैं
उस से पूछे कोई चाहत के मज़े
यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था