Love Poetry of Akhtar Ansari (page 2)

Love Poetry of Akhtar Ansari (page 2)
नामअख़्तर अंसारी
अंग्रेज़ी नामAkhtar Ansari
जन्म की तारीख1909
मौत की तिथि1988

किसी से लड़ाएँ नज़र और झेलें मोहब्बत के ग़म इतनी फ़ुर्सत कहाँ

ख़्वाहिश-ए-ऐश नहीं दर्द-ए-निहानी की क़सम

ख़िज़ाँ में आग लगाओ बहार के दिन हैं

जो दाग़ बन के तमन्ना तमाम हो जाए

जाँ-सिपारी के भी अरमाँ ज़िंदगी की आस भी

हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें

ग़म-ज़दा हैं मुब्तला-ए-दर्द हैं नाशाद हैं

ग़म-ए-हयात कहानी है क़िस्सा-ख़्वाँ हूँ मैं

दिन मुरादों के ऐश की रातें

दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है

दिल के अरमान दिल को छोड़ गए

चीर कर सीने को रख दे गर न पाए ग़म-गुसार

चर्ख़ की सई-ए-जफ़ा कोशिश नाकारा है

बहार-ए-फ़िक्र के जल्वे लुटा दिए हम ने

बहार आई ज़माना हुआ ख़राबाती

अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं

अपनी बहार पे हँसने वालो कितने चमन ख़ाशाक हुए

आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया

आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है

आफ़तों में घिर गया हूँ ज़ीस्त से बे-ज़ार हूँ

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