Qitas of Akhtar Ansari
नाम | अख़्तर अंसारी |
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अंग्रेज़ी नाम | Akhtar Ansari |
जन्म की तारीख | 1909 |
मौत की तिथि | 1988 |
ज़ख़्म खाने के दिन गए लेकिन
ये शीरीं राग मेरे हाफ़िज़े को जगमगाता है
ये साग़र-ए-ग़म की गर्दिश है सहबा-ए-तरब का दौर है ये
ये मुलाक़ात लूटे लेती है
ये बोसीदा फटी गुदड़ी ये सूराख़ों भरी कमली
ये आरज़ुएँ ये जोश-ए-अलम ये सैल-ए-नशात
वो दिल नहीं रहा वो तबीअत नहीं रही
वो बहर-ए-कर्ब-ओ-अलम का ख़ुलासा है यकसर
उन में रहती थी इक हँसी बन कर
उमर भर जीने की तोहमत भी उठेगी या-रब
उजड़ी दुनिया को बसाया है ज़रा देखो तो
तिरी नाज़ुक और लाँबी उँगलियाँ
तमाम उम्र मैं आँसू बहाऊँगा 'अख़्तर'
तैरे गीतों की लय अरे तौबा
सुब्ह की तनवीर बन कर आई वो नाज़ुक-ख़िराम
सारा जहाँ है चाँद की किरनों से सीम-गूँ
सई-ए-राहत हो गई ख़्वाब-ओ-ख़याल
सच तो ये है जहाँ में मेरे ब'अद
रात को बैठ कर लब-ए-दरिया
क़ल्ब ज़िंदा है लफ़्ज़ हैं बे-जान
पिहना-ए-आसमाँ पे हैं तारी उदासियाँ
फुवार, अब्र, परिंदों के गीत, मस्त हवा
पानी ले सकते हैं दरिया से मगर कूज़े में हम
पढ़ा है मैं ने फ़सानों में जिस तरह 'अख़्तर'
नींद आती है इस तरह शब को
नसीम, फूलों की रौनक़, खिले हुए तारे
नश्शा-ए-ख़्वाब में मदहोश है सारी दुनिया
मुतरिबा जब सदा-ए-साज़ के साथ
मोहब्बत! ऐ कि तू देवी है ग़म की रोए जा
मौत की सी पुर-सुकूँ वीरानियाँ