Sad Poetry of Akhtar Ansari

Sad Poetry of Akhtar Ansari
नामअख़्तर अंसारी
अंग्रेज़ी नामAkhtar Ansari
जन्म की तारीख1909
मौत की तिथि1988

याद-ए-माज़ी अज़ाब है या-रब

शबाब-ए-दर्द मिरी ज़िंदगी की सुब्ह सही

दूसरों का दर्द 'अख़्तर' मेरे दिल का दर्द है

अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं

ऐ सोज़-ए-जाँ-गुदाज़ अभी मैं जवान हूँ

आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया

ये सनम रिवायत-ओ-नक़्ल के हुबल-ओ-मनात से कम नहीं

ये हसीन फ़ितरत के हुस्न का अनीला-पन

तिरा आसमाँ नावकों का ख़ज़ीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना

सुनने वाले फ़साना तेरा है

सुना के अपने ऐश-ए-ताम की रूदाद के टुकड़े

सीना ख़ूँ से भरा हुआ मेरा

शोले भड़काओ देखते क्या हो

शोले भड़काओ देखते क्या हो

सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम

समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता

साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं

सदा कुछ ऐसी मिरे गोश-ए-दिल में आती है

पुर-कैफ़ ज़ियाएँ होती हैं पुर-नूर उजाले होते हैं

फूल सूँघे जाने क्या याद आ गया

लुत्फ़ ले ले के पिए हैं क़दह-ए-ग़म क्या क्या

क्या ख़बर थी इक बला-ए-ना-गहानी आएगी

कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं

किसी से लड़ाएँ नज़र और झेलें मोहब्बत के ग़म इतनी फ़ुर्सत कहाँ

ख़्वाहिश-ए-ऐश नहीं दर्द-ए-निहानी की क़सम

जो दाग़ बन के तमन्ना तमाम हो जाए

जाँ-सिपारी के भी अरमाँ ज़िंदगी की आस भी

हयात इंसाँ की सर ता पा ज़बाँ मालूम होती है

हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें

ग़म-ज़दा हैं मुब्तला-ए-दर्द हैं नाशाद हैं

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