लोग नज़रों को भी पढ़ लेते हैं
अपनी आँखों को झुकाए रखना
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होंटों पे क़र्ज़-ए-हर्फ़-ए-वफ़ा उम्र भर रहा
मिरी गली के मकीं ये मिरे रफ़ीक़-ए-सफ़र
ज़माना अपनी उर्यानी पे ख़ूँ रोएगा कब तक
तमाम हर्फ़ मिरे लब पे आ के जम से गए
चमन के रंग-ओ-बू ने इस क़दर धोका दिया मुझ को
ऐ जलती रुतो गवाह रहना
दिल में इक जज़्बा-ए-बेदाद-ओ-जफ़ा ही होगा
हवा में ख़ुशबुएँ मेरी पहचान बन गई थीं
धूप की गरमी से ईंटें पक गईं फल पक गए
वो रतजगा था कि अफ़्सून-ए-ख़्वाब तारी था
ये सरगुज़िश्त-ए-ज़माना ये दास्तान-ए-हयात
था एक साया सा पीछे पीछे जो मुड़ के देखा तो कुछ नहीं था