जाने क्या महफ़िल-ए-परवाना में देखा उस ने
फिर ज़बाँ खुल न सकी शम्अ जो ख़ामोश हुई
Javed Akhtar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Habib Jalib
Wasi Shah
Parveen Shakir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(655) Peoples Rate This
इक मुंतज़िर-ए-वादा की शम्अ जली होगी
अफ़्साना मोहब्बत का पूरा हो तो कैसे हो
इक राज़-ए-ग़म-ए-दिल जब ख़ुद रह न सका दिल तक
रूह अफ़्सुर्दा तबीअत मिरी ग़म-कोश हुई
घबराएँ हवादिस से क्या हम जीने के सहारे निकलेंगे
अंजाम-ए-कशाकश होगा कुछ देखें तो तमाशा दीवाने
चले बज़्म-ए-दौराँ से जब ज़हर पी के
ज़माने को दूँ क्या कि दामन में मेरे
निकले तिरी महफ़िल से तो साथ न था कोई
इक जुनूँ कहिए उसे जो मिरे सर से निकला
उठ के उस बज़्म से आ जाना कुछ आसान न था