मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा
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कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे
निगह उलझी हुई रंग-ओ-बू में
ख़ुदा तुझे किसी तूफ़ाँ से आश्ना कर दे
रह-ओ-रस्म-ए-हरम ना-मोहरिमानग
गला तो घोंट दिया अहल-ए-मदरसा ने तिरा
नहीं मक़ाम की ख़ूगर तबीअत-ए-आज़ाद
करेंगे अहल-ए-नज़र ताज़ा बस्तियाँ आबाद
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है
एक नौ-जवान के नाम
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
पुराने हैं ये सितारे फ़लक भी फ़र्सूदा
मिरी निगाह में वो रिंद ही नहीं साक़ी