गुम-कर्दा-ए-मंज़िल हुई आवाज़-ए-दरा
अल्फ़ाज़ का रिश्ता न मआ'नी से रहा
एहसास के क़दमों की थकन क्या पूछो
इज़हार तक आया नहीं दम फूल गया
Anwar Masood
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Gulzar
Ahmad Faraz
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गुम रहोगे कब तक अपनी ज़ात ही में
एहसास में बे-ताबीे-ए-जाँ रख दी है
सूरज पे जो थूकोगे तो क्या पाओगे
क्यूँ लग़्ज़िश-ए-पा मेरी मलामत का हदफ़ है
उस मंज़िल-ए-हयात में अब गामज़न है दिल
वो मसाफ़-ए-जीस्त में हर मोड़ पर तन्हा रहा
गुलज़ार से क्या दश्त-ओ-दमन से गुज़रे
मेरा ज़ौक़-ए-सज्दा-रेज़ी रास जिन को आ गया
ये क्या कि फ़क़त अपनी ही तस्वीर बनाओ
हैं ख़्वाब भी और ख़्वाब की ताबीरें भी
ख़ुद-साख़्ता अफ़्साने सुनाते रहिए