हैं ख़्वाब भी और ख़्वाब की ताबीरें भी
हैं हुस्न भी और हुस्न की तनवीरें भी
अल्फ़ाज़ नहीं आइना-ख़ाना हैं ये
ऐ ज़ीस्त हैं इन में तिरी तस्वीरें भी
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
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Faiz Ahmad Faiz
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Parveen Shakir
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Gulzar
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जुनून-ए-शौक़-ए-मोहब्बत की आगही देना
किस वास्ते साहिल पे खड़े हो शश्दर
गुलज़ार से क्या दश्त-ओ-दमन से गुज़रे
सूरज पे जो थूकोगे तो क्या पाओगे
गुम-कर्दा-ए-मंज़िल हुई आवाज़-ए-दरा
गुम रहोगे कब तक अपनी ज़ात ही में
ये क्या कि फ़क़त अपनी ही तस्वीर बनाओ
मेरा ज़ौक़-ए-सज्दा-रेज़ी रास जिन को आ गया
जब तजरबा की धूप में एहसास आया
ख़ुद-साख़्ता अफ़्साने सुनाते रहिए
दश्त-दर-दश्त फिरा करता हूँ प्यासा हूँ मैं