किस वास्ते साहिल पे खड़े हो शश्दर
हाथों में लिए तीरा-दिली के पत्थर
दावा है अगर दीदा-वरी का तुम को
इम्काँ के समुंदर से निकालो पत्थर
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Rahat Indori
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(677) Peoples Rate This
गुम रहोगे कब तक अपनी ज़ात ही में
जब तजरबा की धूप में एहसास आया
ज़ख़्म दिल का ख़ूँ-चकाँ ऐसा न था
हर सुब्ह के चेहरे को निखारा किस ने
गुलज़ार से क्या दश्त-ओ-दमन से गुज़रे
सूरज पे जो थूकोगे तो क्या पाओगे
मेरा ज़ौक़-ए-सज्दा-रेज़ी रास जिन को आ गया
ख़ुद-साख़्ता अफ़्साने सुनाते रहिए
उस मंज़िल-ए-हयात में अब गामज़न है दिल
एहसास में बे-ताबीे-ए-जाँ रख दी है
गुम-कर्दा-ए-मंज़िल हुई आवाज़-ए-दरा
जुनून-ए-शौक़-ए-मोहब्बत की आगही देना