ख़ुद-साख़्ता अफ़्साने सुनाते रहिए
फ़र्सूदा तसादुम को दिखाते रहिए
यूँ आप शब ओ रोज़ ब-फ़ैज़-ए-जज़्बात
औहाम को ईमान बनाते रहिए
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Habib Jalib
Javed Akhtar
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Anwar Masood
Parveen Shakir
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उस मंज़िल-ए-हयात में अब गामज़न है दिल
हर सुब्ह के चेहरे को निखारा किस ने
क्यूँ लग़्ज़िश-ए-पा मेरी मलामत का हदफ़ है
वो मसाफ़-ए-जीस्त में हर मोड़ पर तन्हा रहा
जब तजरबा की धूप में एहसास आया
जुनून-ए-शौक़-ए-मोहब्बत की आगही देना
गुलज़ार से क्या दश्त-ओ-दमन से गुज़रे
एहसास में बे-ताबीे-ए-जाँ रख दी है
गुम रहोगे कब तक अपनी ज़ात ही में
दश्त-दर-दश्त फिरा करता हूँ प्यासा हूँ मैं
किस वास्ते साहिल पे खड़े हो शश्दर