ये क्या कि फ़क़त अपनी ही तस्वीर बनाओ
ऐ नक़्श-गरो वुसअत-ए-फ़न कुछ तो दिखाओ
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(688) Peoples Rate This
दश्त-दर-दश्त फिरा करता हूँ प्यासा हूँ मैं
मेरा ज़ौक़-ए-सज्दा-रेज़ी रास जिन को आ गया
हैं ख़्वाब भी और ख़्वाब की ताबीरें भी
जब तजरबा की धूप में एहसास आया
किस वास्ते साहिल पे खड़े हो शश्दर
ज़ख़्म दिल का ख़ूँ-चकाँ ऐसा न था
सूरज पे जो थूकोगे तो क्या पाओगे
उस मंज़िल-ए-हयात में अब गामज़न है दिल
एहसास में बे-ताबीे-ए-जाँ रख दी है
गुलज़ार से क्या दश्त-ओ-दमन से गुज़रे
गुम-कर्दा-ए-मंज़िल हुई आवाज़-ए-दरा