तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा
मुझ को ग़ुस्से पे प्यार आता है
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वो और वा'दा वस्ल का क़ासिद नहीं नहीं
बातें नासेह की सुनीं यार के नज़्ज़ारे किए
गिरह से कुछ नहीं जाता है पी भी ले ज़ाहिद
सारा पर्दा है दुई का जो ये पर्दा उठ जाए
पहले तो मुझे कहा निकालो
दिल को तर्ज़-ए-निगह-ए-यार जताते आए
ख़्वाब में आँखें जो तलवों से मलीं
आबरू शर्त है इंसाँ के लिए दुनिया में
गर्द उड़ी आशिक़ की तुर्बत से तो झुँझला कर कहा
सौ शेर एक जलसे में कहते थे हम 'अमीर'
मैं रो के आह करूँगा जहाँ रहे न रहे