साए ढलने चराग़ जलने लगे
लोग अपने घरों को चलने लगे
Parveen Shakir
Gulzar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Habib Jalib
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
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तश्हीर अपने दर्द की हर सू कराइए
मिरे कासा-ए-शब-ओ-रोज़ में
सेल्फ़ मेड लोगों का अलमिया
हम-ज़ाद
वो तिरे नसीब की बारिशें किसी और छत पे बरस गईं
ऐ वक़्त ज़रा थम जा
लहू में तैरते फिरते मलाल से कुछ हैं
फ़ासले
आईनों में अक्स न हों तो हैरत रहती है
एक और मशवरा
चेहरे पे मिरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिन
ज़रा सी बात