कमर बाँधी है तौबा तोड़ने पर
इलाही ख़ैर अज़्म-ए-नातवाँ की
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Gulzar
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(681) Peoples Rate This
हर शय को इंतिहा है यक़ीं है कि वस्ल हो
मिट्टी ख़राब है तिरे कूचे में वर्ना हम
मैं गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ छुट के जाऊँगा कहाँ
गोया कि सब ग़लत हैं मिरी बद-गुमानियाँ
मिरी नुमूद से पैदा है रंग-ए-नाकामी
उन से हम लौ लगाए बैठे हैं
शर्म भी इक तरह की चोरी है
कैसी हया कहाँ की वफ़ा पास-ए-ख़ल्क़ क्या
कुछ ख़बर होती तो मैं अपनी ख़बर क्यूँ रखता
अब अपना हाल हम उन्हें तहरीर कर चुके
आँखें दिखाईं ग़ैर को मेरी ख़ता के साथ
मोहब्बत हो तो बर्क़-ए-जिस्म-ओ-जाँ हो