रौशनी जब से मुझे छोड़ गई
शम्अ रोती है सिरहाने मेरे
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जितना रोना था रो चुके आदम
खिलना हर एक फूल का 'असग़र' है मोजज़ा
कहने आए थे कुछ कहा ही नहीं
किसी की चाह में ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
पढ़ते थे किताबों में क़यामत का समाँ
शिकार अपनी अना का है आज का इंसाँ
लोग अच्छों को भी किस दिल से बुरा कहते हैं
एक फ़ित्ना सा उठाया है चला जाएगा
दुनिया से ख़त्म हो गया इंसान का वजूद
ऐ चारागरो पास तुम्हारे न मिलेगी
उन के हाथों से मिला था पी लिया
मुझ को ग़म का न कभी दर्द का एहसास रहा