खिलना हर एक फूल का 'असग़र' है मोजज़ा
मुरझाती है कली भी बहारों के दरमियाँ
Faiz Ahmad Faiz
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Gulzar
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Parveen Shakir
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Mir Taqi Mir
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तू ने अब तक जिसे नहीं समझा
ऐ चारागरो पास तुम्हारे न मिलेगी
एक फ़ित्ना सा उठाया है चला जाएगा
दुनिया से ख़त्म हो गया इंसान का वजूद
ज़िंदगी से समझौता आज हो गया कैसे
लोग अच्छों को भी किस दिल से बुरा कहते हैं
शिकार अपनी अना का है आज का इंसाँ
पढ़ते थे किताबों में क़यामत का समाँ
किसी की चाह में ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
मुझ को ग़म का न कभी दर्द का एहसास रहा
जितना रोना था रो चुके आदम