मुझ को ग़म का न कभी दर्द का एहसास रहा
हर ख़ुशी पास थी जब तक तू मिरे पास रहा
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उन के हाथों से मिला था पी लिया
एक फ़ित्ना सा उठाया है चला जाएगा
किसी की चाह में ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
ज़िंदगी से समझौता आज हो गया कैसे
हो गई अपनों की ज़ाहिर दुश्मनी अच्छा हुआ
खिलना हर एक फूल का 'असग़र' है मोजज़ा
ऐ चारागरो पास तुम्हारे न मिलेगी
जितना रोना था रो चुके आदम
कहने आए थे कुछ कहा ही नहीं
तिरे महल में हज़ारों चराग़ जलते हैं
शिकार अपनी अना का है आज का इंसाँ