उन के हाथों से मिला था पी लिया
ज़हर था पर ज़ाइक़ा अच्छा लगा
Habib Jalib
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Wasi Shah
Gulzar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(611) Peoples Rate This
शिकार अपनी अना का है आज का इंसाँ
जितना रोना था रो चुके आदम
मुझ को ग़म का न कभी दर्द का एहसास रहा
पढ़ते थे किताबों में क़यामत का समाँ
किसी की चाह में ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
दुनिया से ख़त्म हो गया इंसान का वजूद
सुनो कुछ दीदा-ए-नम बोलते हैं
एक फ़ित्ना सा उठाया है चला जाएगा
लोग अच्छों को भी किस दिल से बुरा कहते हैं
खिलना हर एक फूल का 'असग़र' है मोजज़ा
तू ने अब तक जिसे नहीं समझा