दुनिया से ख़त्म हो गया इंसान का वजूद
रहना पड़ा है हम को दरिंदों के दरमियाँ
Jaun Eliya
Habib Jalib
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Gulzar
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खिलना हर एक फूल का 'असग़र' है मोजज़ा
ज़िंदगी से समझौता आज हो गया कैसे
किसी की चाह में ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
एक फ़ित्ना सा उठाया है चला जाएगा
उन के हाथों से मिला था पी लिया
लोग अच्छों को भी किस दिल से बुरा कहते हैं
जितना रोना था रो चुके आदम
रौशनी जब से मुझे छोड़ गई
मुझ को ग़म का न कभी दर्द का एहसास रहा
ऐ चारागरो पास तुम्हारे न मिलेगी
हो गई अपनों की ज़ाहिर दुश्मनी अच्छा हुआ
तू ने अब तक जिसे नहीं समझा