ऐ चारागरो पास तुम्हारे न मिलेगी
बीमार-ए-मोहब्बत की दवा और ही कुछ है
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सुनो कुछ दीदा-ए-नम बोलते हैं
पढ़ते थे किताबों में क़यामत का समाँ
कोई छोटा यहाँ कोई बड़ा है
हो गई अपनों की ज़ाहिर दुश्मनी अच्छा हुआ
शिकार अपनी अना का है आज का इंसाँ
लोग अच्छों को भी किस दिल से बुरा कहते हैं
कहने आए थे कुछ कहा ही नहीं
खिलना हर एक फूल का 'असग़र' है मोजज़ा
उन के हाथों से मिला था पी लिया
तू ने अब तक जिसे नहीं समझा
एक फ़ित्ना सा उठाया है चला जाएगा