लोग अच्छों को भी किस दिल से बुरा कहते हैं
हम को कहने में बुरों को भी बुरा लगता है
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Habib Jalib
Rahat Indori
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Gulzar
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दुनिया से ख़त्म हो गया इंसान का वजूद
हो गई अपनों की ज़ाहिर दुश्मनी अच्छा हुआ
तिरे महल में हज़ारों चराग़ जलते हैं
कोई छोटा यहाँ कोई बड़ा है
मुझ को ग़म का न कभी दर्द का एहसास रहा
एक फ़ित्ना सा उठाया है चला जाएगा
तू ने अब तक जिसे नहीं समझा
कहने आए थे कुछ कहा ही नहीं
रौशनी जब से मुझे छोड़ गई
पढ़ते थे किताबों में क़यामत का समाँ
उन के हाथों से मिला था पी लिया
खिलना हर एक फूल का 'असग़र' है मोजज़ा