पढ़ते थे किताबों में क़यामत का समाँ
नेपाल में कुछ इस का नमूना देखा
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किसी की चाह में ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
हो गई अपनों की ज़ाहिर दुश्मनी अच्छा हुआ
जितना रोना था रो चुके आदम
तू ने अब तक जिसे नहीं समझा
कहने आए थे कुछ कहा ही नहीं
सुनो कुछ दीदा-ए-नम बोलते हैं
ज़िंदगी से समझौता आज हो गया कैसे
शिकार अपनी अना का है आज का इंसाँ
लोग अच्छों को भी किस दिल से बुरा कहते हैं
उन के हाथों से मिला था पी लिया
खिलना हर एक फूल का 'असग़र' है मोजज़ा