Sad Poetry of Baqa Baluch

Sad Poetry of Baqa Baluch
नामबक़ा बलूच
अंग्रेज़ी नामBaqa Baluch

तू ख़ुश है अपनी दुनिया में

सिर्फ़ मौसम के बदलने ही पे मौक़ूफ़ नहीं

मैं किनारे पे खड़ा हूँ तो कोई बात नहीं

कैसा लम्हा आन पड़ा है

एक उलझन रात दिन पलती रही दिल में कि हम

दर्द उट्ठा था मिरे पहलू में

संदेसा

मुझे इक शेर कहना है

माँ

उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे

सब्र-ओ-ज़ब्त की जानाँ दास्ताँ तो मैं भी हूँ दास्ताँ तो तुम भी हो

क्या पूछते हो मैं कैसा हूँ

क्या कहें क्या हुस्न का आलम रहा

कम कम रहना ग़म के सुर्ख़ जज़ीरों में

कैसा लम्हा आन पड़ा है

जाने क्या सोच के घर तक पहुँचा

अब नहीं दर्द छुपाने का क़रीना मुझ में

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