Love Poetry of Barq Mirza Raza

Love Poetry of Barq Mirza Raza
नाममिर्ज़ा रज़ा बर्क़
अंग्रेज़ी नामBarq Mirza Raza
जन्म की तारीख1790
मौत की तिथि1857
जन्म स्थानLucknow

ख़ुद-फ़रोशी को जो तू निकले ब-शक्ल-ए-यूसुफ़

इतना तो जज़्ब-ए-इश्क़ ने बारे असर किया

हम तो अपनों से भी बेगाना हुए उल्फ़त में

गया शबाब न पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आया

बाद-ए-फ़ना भी है मरज़-ए-इश्क़ का असर

ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है

अगर हयात है देखेंगे एक दिन दीदार

ज़ेर-ए-ज़मीं हूँ तिश्ना-ए-दीदार-ए-यार का

वो शाह-ए-हुस्न जो बे-मिस्ल है हसीनों में

वहशत में भी रुख़ जानिब-ए-सहरा न करेंगे

रंग से पैरहन-ए-सादा हिनाई हो जाए

पर्दा उलट के उस ने जो चेहरा दिखा दिया

न रहे नामा ओ पैग़ाम के लाने वाले

न कोई उन के सिवा और जान-ए-जाँ देखा

मिसाल-ए-तार-ए-नज़र क्या नज़र नहीं आता

मतलब न काबे से न इरादा कनिश्त का

मैं अगर रोने लगूँ रुतबा-ए-वाला बढ़ जाए

लाख पर्दे से रुख़-ए-अनवर अयाँ हो जाएगा

लब-ए-रंगीं से अगर तू गुहर-अफ़शाँ होता

किस तरह मिलें कोई बहाना नहीं मिलता

जब अयाँ सुब्ह को वो नूर-ए-मुजस्सम हो जाए

गया शबाब न पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आया

देखी जो ज़ुल्फ़-ए-यार तबीअत सँभल गई

चाँद सा चेहरा जो उस का आश्कारा हो गया

ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है

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