ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा
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इन आँखों ने क्या क्या तमाशा न देखा
जिस ख़त पे ये लगाई उसी का मिला जवाब
तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता
क्या क्या फ़रेब दिल को दिए इज़्तिराब में
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
देखना हश्र में जब तुम पे मचल जाऊँगा
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
हम भी क्या ज़िंदगी गुज़ार गए
ख़ार-ए-हसरत बयान से निकला
तुम को आशुफ़्ता-मिज़ाजों की ख़बर से क्या काम
ग़श खा के 'दाग़' यार के क़दमों पे गिर पड़ा
क्या इज़्तिराब-ए-शौक़ ने मुझ को ख़जिल किया