आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
इस के ब'अद आए जो अज़ाब आए
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सुब्ह की आज जो रंगत है वो पहले तो न थी
सारी दुनिया से दूर हो जाए
फिर आईना-ए-आलम शायद कि निखर जाए
सफ़र नामा
ख़ैर दोज़ख़ में मय मिले न मिले
न किसी पे ज़ख़्म अयाँ कोई न किसी को फ़िक्र रफ़ू की है
मेरी ख़ामोशियों में लर्ज़ां है
तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले
हार्ट-अटैक
तेरी सूरत जो दिल-नशीं की है
तेज़ है आज दर्द-ए-दिल साक़ी
नज़्म