साहिल के तमाशाई हर डूबने वाले पर
अफ़्सोस तो करते हैं इमदाद नहीं करते
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हम आगही-ए-इश्क़ का अफ़्साना कहेंगे
घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ
दुनिया-ए-तसव्वुर हम आबाद नहीं करते
वो जाने कितना सर-ए-बज़्म शर्मसार हुआ
दिल से अगर कभी तिरा अरमान जाएगा
ज़िंदगी नाम है इक जोहद-ए-मुसलसल का 'फ़ना'
साक़िया तू ने मिरे ज़र्फ़ को समझा क्या है
तर्क-ए-वतन के बाद ही क़द्र-ए-वतन हुई
गुल तो गुल ख़ार तक चुन लिए हैं
रिंद जन्नत में जा भी चुके
चेहरा-ए-सुब्ह नज़र आया रुख़-ए-शाम के बाद
जल्वा हो तो जल्वा हो पर्दा हो तो पर्दा हो