फ़रहत एहसास कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का फ़रहत एहसास (page 6)
नाम | फ़रहत एहसास |
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अंग्रेज़ी नाम | Farhat Ehsas |
जन्म की तारीख | 1952 |
जन्म स्थान | Delhi |
मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं
मैं महफ़िल-बाज़ घबरा कर हुआ तन्हाई वाला
मैं अपने रू-ए-हक़ीक़त को खो नहीं सकता
महफ़िल में अब के आओ तो ऐसी ख़ता न हो
लोग यूँ जाते नज़र आते हैं मक़्तल की तरफ़
लगे हुए हैं ज़माने के इंतिज़ाम में हम
क्या बैठ जाएँ आन के नज़दीक आप के
कुर्सी-ए-दिल पे तिरे जाते ही दर्द आ बैठे
कुछ भी न कहना कुछ भी न सुनना लफ़्ज़ में लफ़्ज़ उतरने देना
कुछ बताता नहीं क्या सानेहा कर बैठा है
किस सलीक़े से वो मुझ में रात-भर रह कर गया
किस सलीक़े से वो मुझ में रात-भर रह कर गया
ख़ुदा ख़ामोश बंदे बोलते हैं
ख़ुद से इंकार को हम-ज़ाद किया है मैं ने
ख़ूब होनी है अब इस शहर में रुस्वाई मिरी
ख़िलाफ़-ए-गर्दिश-ए-मा'मूल होना चाहता हूँ
ख़त बहुत उस के पढ़े हैं कभी देखा नहीं है
ख़ाना-साज़ उजाला मार
ख़लल आया न हक़ीक़त में न अफ़्साना बना
ख़ाक ओ ख़ूँ की नई तंज़ीम में शामिल हो जाओ
ख़ाक है मेरा बदन ख़ाक ही उस का होगा
खड़ी है रात अंधेरों का अज़दहाम लगाए
कैसी बला-ए-जाँ है ये मुझ को बदन किए हुए
कभी ख़ुदा कभी इंसान रोक लेता है
कभी हँसते नहीं कभी रोते नहीं कभी कोई गुनाह नहीं करते
काबा-ए-दिल दिमाग़ का फिर से ग़ुलाम हो गया
काम उन आँखों की हवसनाकी की साज़िश आ गई
जो इश्क़ चाहता है वो होना नहीं है आज
जिस्म की क़ैद से सब रंग तुम्हारे निकल आए
जिस्म की कुछ और अभी मिट्टी निकाल