फ़रहत एहसास कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का फ़रहत एहसास (page 2)
नाम | फ़रहत एहसास |
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अंग्रेज़ी नाम | Farhat Ehsas |
जन्म की तारीख | 1952 |
जन्म स्थान | Delhi |
लोग यूँ जाते नज़र आते हैं मक़्तल की तरफ़
क्या बदन है कि ठहरता ही नहीं आँखों में
किसी हालत में भी तन्हा नहीं होने देती
किस की है ये तस्वीर जो बनती नहीं मुझ से
कौन सी ऐसी ख़ुशी है जो मिली हो एक बार
कभी इस रौशनी की क़ैद से बाहर भी निकलो तुम
जो इश्क़ चाहता है वो होना नहीं है आज
जिस्म का कूज़ा है अपना और न ये दरिया-ए-जाँ
जिसे भी प्यास बुझानी हो मेरे पास रहे
जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ
जान ये सरकशी-ए-जिस्म तिरे बस की नहीं
इश्क़ में पीने का पानी बस आँख का पानी
इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से
हिज्र ओ विसाल चराग़ हैं दोनों तन्हाई के ताक़ों में
हर गली कूचे में रोने की सदा मेरी है
हमें जब अपना तआ'रुफ़ करना पड़ता है
हमें जब अपना तआ'रुफ़ कराना पड़ता है
हमारी आँखों में बस गया है अजीब पंजाब आँसुओं का
हमारा ज़िंदा रहना और मरना एक जैसा है
फ़रार हो गई होती कभी की रूह मिरी
एक रात वो गया था जहाँ बात रोक के
एक बार उस ने बुलाया था तो मसरूफ़ था मैं
दुनिया से कहो जो उसे करना है वो कर ले
दो अलग लफ़्ज़ नहीं हिज्र ओ विसाल
धूप बोली कि मैं आबाई वतन हूँ तेरा
दर-अस्ल इस जहाँ को ज़रूरत नहीं मिरी
चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है
बे-बदन रूह बने फिरते रहोगे कब तक
बस एक लम्स कि जल जाएँ सब ख़स-ओ-ख़ाशाक
बन न पाया हीर, राँझा अब भी राँझा है बहुत