फ़रहत एहसास कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का फ़रहत एहसास (page 7)
नाम | फ़रहत एहसास |
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अंग्रेज़ी नाम | Farhat Ehsas |
जन्म की तारीख | 1952 |
जन्म स्थान | Delhi |
जिस्म के पार वो दिया सा है
जिस्म जब महव-ए-सुख़न हों शब-ए-ख़ामोशी से
जिस तरह पैदा हुए उस से जुदा पैदा करो
जिस को जैसा भी है दरकार उसे वैसा मिल जाए
झगड़े ख़ुदा से हो गए अहद-ए-शबाब में
जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ
इश्क़ में कितने बुलंद इम्कान हो जाते हैं हम
इश्क़ भी करना है हम को और ज़िंदा भी रहना है
इस तरह आता हूँ बाज़ारों के बीच
ईमाँ का लुत्फ़ पहलू-ए-तश्कीक में मिला
हम ने परिंद-ए-वस्ल के पर काट डाले हैं
हम न प्यासे हैं न पानी के लिए आए हैं
हम को बरा-ए-दुनिया बे-जान कर दिया है
हम अपने आप को अपने से कम भी करते रहते हैं
हम अपना इस्म ले कर शहर-ए-सिफ़त से निकले
हुई इक ख़्वाब से शादी मिरी तन्हाई की
हर गली कूचे में रोने की सदा मेरी है
हर इक जानिब उन आँखों का इशारा जा रहा है
हमेशा का ये मंज़र है कि सहरा जल रहा है
हमें जब अपना तआरुफ़ कराना पड़ता है
हमें जब अपना तआरुफ़ कराना पड़ता है
है शोर साहिलों पर सैलाब आ रहा है
हद्द-ए-बदन में मेरी ज़ात आ नहीं रही है
घर में चीज़ें बढ़ रही हैं ज़िंदगी कम हो रही है
घर बनाने में तमाम अहल-ए-सफ़र लग गए हैं
गर अपने आप में इंसान बढ़ता जा रहा है
इक हवा सा मिरे सीने से मिरा यार गया
इक हवा आई है दीवार में दर करने को
एक ग़ज़ल कहते हैं इक कैफ़िय्यत तारी कर लेते हैं
दोनों का ला-शुऊ'र है इतना मिला हुआ