कहाँ वो लोग जो थे हर तरफ़ से नस्तालीक़
पुरानी बात हुई चुस्त बंदिशें लिखना
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Habib Jalib
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Rahat Indori
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Allama Iqbal
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ग़ज़ल के पर्दे में बे-पर्दा ख़्वाहिशें लिखना
उदास देख के वजह-ए-मलाल पूछेगा
बहुत जुमूद था बे-हौसलों में क्या करता
हर इक क़यास हक़ीक़त से दूर-तर निकला
नुत्क़ से लब तक है सदियों का सफ़र
बिसात-ए-दानिश-ओ-हर्फ़-ओ-हुनर कहाँ खोलें
आँखों के ख़्वाब दिल की जवानी भी ले गया
मैं ख़ुद हूँ नक़्द मगर सौ उधार सर पर है
वक़्त ने किस आग में इतना जलाया है मुझे
सुलगना अंदर अंदर मिस्रा-ए-तर सोचते रहना
ख़ाक-ए-'शिबली' से ख़मीर अपना भी उट्ठा है 'फ़ज़ा'