Ghazal Poetry (page 456)
खेत ऐसे सैराब नहीं होते भाई
मुस्तहसन जामी
दरियाओं को हाल सुना कर रक़्स किया
मुस्तहसन जामी
अब सोच रहे हैं यहाँ क्या क्या नहीं देखा
मुस्तहसन जामी
''ज़बान-ए-ग़ैर से क्या शरह-ए-आरज़ू करते''
मुस्तफ़ा ज़ैदी
यूँ तो वो हर किसी से मिलती है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
वो अहद अहद ही क्या है जिसे निभाओ भी
मुस्तफ़ा ज़ैदी
तेरे चेहरे की तरह और मिरे सीने की तरह
मुस्तफ़ा ज़ैदी
तरी तलाश में हर रहनुमा से बातें कीं
मुस्तफ़ा ज़ैदी
सीने में ख़िज़ाँ आँखों में बरसात रही है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
सहर जीतेगी या शाम-ए-ग़रीबाँ देखते रहना
मुस्तफ़ा ज़ैदी
रोकता है ग़म-ए-इज़हार से पिंदार मुझे
मुस्तफ़ा ज़ैदी
क़दम क़दम पे तमन्ना-ए-इल्तिफ़ात तो देख
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नगर नगर मेले को गए कौन सुनेगा तेरी पुकार
मुस्तफ़ा ज़ैदी
लोगों की मलामत भी है ख़ुद दर्द-सरी भी
मुस्तफ़ा ज़ैदी
क्या क्या नज़र को शौक़-ए-हवस देखने में था
मुस्तफ़ा ज़ैदी
क्या क्या नज़र को शौक़-ए-हवस देखने में था
मुस्तफ़ा ज़ैदी
कोई रफ़ीक़ बहम ही न हो तो क्या कीजे
मुस्तफ़ा ज़ैदी
किसी तो काम ज़माने के सोगवार आए
मुस्तफ़ा ज़ैदी
किसी और ग़म में इतनी ख़लिश-ए-निहाँ नहीं है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
कफ़-ए-मोमिन से न दरवाज़ा-ए-दौराँ से मिला
मुस्तफ़ा ज़ैदी
कभी झिड़की से कभी प्यार से समझाते रहे
मुस्तफ़ा ज़ैदी
जिस दिन से अपना तर्ज़-ए-फ़क़ीराना छुट गया
मुस्तफ़ा ज़ैदी
जब हवा शब को बदलती हुई पहलू आई
मुस्तफ़ा ज़ैदी
इस क़दर अब ग़म-ए-दौराँ की फ़रावानी है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
हुई ईजाद नई तर्ज़-ए-ख़ुशामद कि नहीं
मुस्तफ़ा ज़ैदी
हर तरफ़ इम्बिसात है ऐ दिल
मुस्तफ़ा ज़ैदी
हर इक ने कहा क्यूँ तुझे आराम न आया
मुस्तफ़ा ज़ैदी
गिर्या तो अक्सर रहा पैहम रहा
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़म-ए-दौराँ ने भी सीखे ग़म-ए-जानाँ के चलन
मुस्तफ़ा ज़ैदी
फ़नकार ख़ुद न थी मिरे फ़न की शरीक थी
मुस्तफ़ा ज़ैदी