ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर (page 3)
नाम | ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर |
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अंग्रेज़ी नाम | Ghulam Mohammad Qasir |
जन्म की तारीख | 1941 |
मौत की तिथि | 1999 |
जन्म स्थान | Peshawar |
रात का हर इक मंज़र रंजिशों से बोझल था
फिर वो दरिया है किनारों से छलकने वाला
फिर वही कहने लगे तू मिरे घर आया था
फिर तो इस बे-नाम सफ़र में कुछ भी न अपने पास रहा
पहले इक शख़्स मेरी ज़ात बना
नज़र नज़र में अदा-ए-जमाल रखते थे
मोहब्बत की गवाही अपने होने की ख़बर ले जा
मिलने की हर आस के पीछे अन-देखी मजबूरी थी
लब पे सुर्ख़ी की जगह जो मुस्कुराहट मल रहे हैं
कुछ बे-तरतीब सितारों को पलकों ने किया तस्ख़ीर तो क्या
किताब-ए-आरज़ू के गुम-शुदा कुछ बाब रक्खे हैं
ख़्वाब कहाँ से टूटा है ताबीर से पूछते हैं
ख़ामोश थे तुम और बोलता था बस एक सितारा आँखों में
कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला
कहीं लोग तन्हा कहीं घर अकेले
जज़्बों को किया ज़ंजीर तो क्या तारों को किया तस्ख़ीर तो क्या
हम ने तो बे-शुमार बहाने बनाए हैं
हिज्र के तपते मौसम में भी दिल उन से वाबस्ता है
हर एक पल की उदासी को जानता है तो आ
गुलाबों के नशेमन से मिरे महबूब के सर तक
गलियों की उदासी पूछती है घर का सन्नाटा कहता है
बयाबाँ दूर तक मैं ने सजाया था
बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो
बन से फ़सील-ए-शहर तक कोई सवार भी नहीं
बन में वीराँ थी नज़र शहर में दिल रोता है
बग़ैर उस के अब आराम भी नहीं आता
अपने अशआर को रुस्वा सर-ए-बाज़ार करूँ
अक्स की सूरत दिखा कर आप का सानी मुझे
अकेला दिन है कोई और न तन्हा रात होती है
आँख से बिछड़े काजल को तहरीर बनाने वाले