Sad Poetry of Ghulam Murtaza Rahi
नाम | ग़ुलाम मुर्तज़ा राही |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Ghulam Murtaza Rahi |
जन्म की तारीख | 1937 |
कविताएं
Ghazal 31
Couplets 47
Love 14
Sad 21
Heart Broken 29
Hope 12
Friendship 3
Islamic 1
Sufi 2
ख्वाब 8
सहरा जंगल सागर पर्बत
रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से
न जाने क़ैद में हूँ या हिफ़ाज़त में किसी की
कोई इक ज़ाइक़ा नहीं मिलता
हिसार-ए-जिस्म मिरा तोड़-फोड़ डालेगा
हर एक साँस मुझे खींचती है उस की तरफ़
अब जो आज़ाद हुए हैं तो ख़याल आया है
उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा
ठहर ठहर के मिरा इंतिज़ार करता चल
शक्ल सहरा की हमेशा जानी-पहचानी रहे
रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से
पेड़ अगर ऊँचा मिलता है
मिली राह वो कि फ़रार का न पता चला
मेरे लब तक जो न आई वो दुआ कैसी थी
माज़ी! तुझ से ''हाल'' मिरा शर्मिंदा है
कहने सुनने का अजब दोनों तरफ़ जोश रहा
झलकती है मिरी आँखों में बेदारी सी कोई
हिसार-ए-जिस्म मिरा तोड़-फोड़ डालेगा
हैं और कई रेत के तूफ़ाँ मिरे आगे
बर्क़ का ठीक अगर निशाना हो
बढ़ा जब उस की तवज्जोह का सिलसिला कुछ और