Sad Poetry of Habib Jalib (page 2)
नाम | हबीब जालिब |
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अंग्रेज़ी नाम | Habib Jalib |
जन्म की तारीख | 1929 |
मौत की तिथि | 1993 |
जन्म स्थान | Lahore |
जम्हूरियत
कॉफ़ी-हाउस
बगिया लहूलुहान
औरत
ज़र्रे ही सही कोह से टकरा तो गए हम
यूँ वो ज़ुल्मत से रहा दस्त-ओ-गरेबाँ यारो
ये सोच कर न माइल-ए-फ़रियाद हम हुए
ये और बात तेरी गली में न आएँ हम
वो देखने मुझे आना तो चाहता होगा
उस ने जब हँस के नमस्कार किया
उस रऊनत से वो जीते हैं कि मरना ही नहीं
उस गली के लोगों को मुँह लगा के पछताए
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था
तेरी आँखों का अजब तुर्फ़ा समाँ देखा है
तिरे माथे पे जब तक बल रहा है
शहर वीराँ उदास हैं गलियाँ
फिर दिल से आ रही है सदा उस गली में चल
नज़र नज़र में लिए तेरा प्यार फिरते हैं
न डगमगाए कभी हम वफ़ा के रस्ते में
'मीर'-ओ-'ग़ालिब' बने 'यगाना' बने
लोग गीतों का नगर याद आया
क्या क्या लोग गुज़र जाते हैं रंग-बिरंगी कारों में
कुछ लोग ख़यालों से चले जाएँ तो सोएँ
कितना सुकूत है रसन-ओ-दार की तरफ़
कराहते हुए इंसान की सदा हम हैं
कम पुराना बहुत नया था फ़िराक़
कैसे कहें कि याद-ए-यार रात जा चुकी बहुत
कहीं आह बन के लब पर तिरा नाम आ न जाए
कभी तो मेहरबाँ हो कर बुला लें
जीवन मुझ से मैं जीवन से शरमाता हूँ