आया था बज़्म-ए-शेर में अर्ज़-ए-हुनर को मैं
अब जा रहा हूँ ढूँडने अहल-ए-नज़र को मैं
सर फोड़ना कमाल-ए-जुनूँ भी नहीं रहा
बैठा रहूँगा सर में लिए दर्द-ए-सर को मैं
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कम-बख़्त दिल बुरा हुआ तिरी आह आह का
नहीं इताब-ए-ज़माना ख़िताब के क़ाबिल
ऐ 'हफ़ीज़' आह आह पर आख़िर
मुझ से क्या हो सका वफ़ा के सिवा
मिरे डूब जाने का बाइस न पूछो
इन गेसुओं में शाना-ए-अरमाँ न कीजिए
चराग़-ए-ख़ाना-ए-दर्वेश हों मैं
आँख कम-बख़्त से उस बज़्म में आँसू न रुका
नासेह को बुलाओ मिरा ईमान सँभाले
अजनबियों के शहर में गुम हूँ मगर मैं कौन हूँ
उस की सूरत को देखता हूँ मैं
दिल ने आँखों तक आने में इतना वक़्त लिया