Islamic Poetry (page 44)
हुसूल-ए-मंज़िल-ए-जाँ का हुनर नहीं आया
बख़्श लाइलपूरी
ज़ाहिदा काबे को जाता है तो कर याद-ए-ख़ुदा
बहराम जी
कहीं ख़ालिक़ हुआ कहीं मख़्लूक़
बहराम जी
है मुसलमाँ को हमेशा आब-ए-ज़मज़म की तलाश
बहराम जी
यार को हम ने बरमला देखा
बहराम जी
कुफ़्र एक रंग-ए-क़ुदरत-ए-बे-इंतिहा में है
बहराम जी
जो है याँ अासाइश-ए-रंज-ओ-मेहन में मस्त है
बहराम जी
'ज़फ़र' आदमी उस को न जानिएगा वो हो कैसा ही साहब-ए-फ़हम-ओ-ज़का
ज़फ़र
ख़ुदा के वास्ते ज़ाहिद उठा पर्दा न काबे का
ज़फ़र
देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़
ज़फ़र
ये क़िस्सा वो नहीं तुम जिस को क़िस्सा-ख़्वाँ से सुनो
ज़फ़र
वो सौ सौ अठखटों से घर से बाहर दो क़दम निकले
ज़फ़र
वाक़िफ़ हैं हम कि हज़रत-ए-ग़म ऐसे शख़्स हैं
ज़फ़र
वाँ रसाई नहीं तो फिर क्या है
ज़फ़र
शमशीर-ए-बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी ही
ज़फ़र
नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा
ज़फ़र
न उस का भेद यारी से न अय्यारी से हाथ आया
ज़फ़र
मैं हूँ आसी कि पुर-ख़ता कुछ हूँ
ज़फ़र
क्यूँकर न ख़ाकसार रहें अहल-ए-कीं से दूर
ज़फ़र
क्या कहूँ दिल माइल-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता क्यूँकर हुआ
ज़फ़र
काफ़िर तुझे अल्लाह ने सूरत तो परी दी
ज़फ़र
हम ये तो नहीं कहते कि ग़म कह नहीं सकते
ज़फ़र
हवा में फिरते हो क्या हिर्स और हवा के लिए
ज़फ़र
गई यक-ब-यक जो हवा पलट नहीं दिल को मेरे क़रार है
ज़फ़र
देखो इंसाँ ख़ाक का पुतला बना क्या चीज़ है
ज़फ़र
देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़
ज़फ़र
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
ज़फ़र
ज़ेहन और दिल में जो रहती है चुभन खुल जाए
बद्र वास्ती
चराग़ों में अँधेरा है अँधेरे में उजाले हैं
बद्र वास्ती
गिरे क़तरों में पत्थर पर सदा ऐसा भी होता है
अज़रा वहीद