Islamic Poetry (page 46)
बचपने की याद
अज़ीज़ लखनवी
आतिश-ए-ख़ामोश
अज़ीज़ लखनवी
तिरी कोशिश हम ऐ दिल सई-ए-ला-हासिल समझते हैं
अज़ीज़ लखनवी
साफ़ बातिन देर से हैं मुंतज़िर
अज़ीज़ लखनवी
जो यहाँ महव-ए-मा-सिवा न हुआ
अज़ीज़ लखनवी
जाम ख़ाली जहाँ नज़र आया
अज़ीज़ लखनवी
इस वहम की इंतिहा नहीं है
अज़ीज़ लखनवी
दिल हमारा है कि हम माइल-ए-फ़रियाद नहीं
अज़ीज़ लखनवी
देख कर हर दर-ओ-दीवार को हैराँ होना
अज़ीज़ लखनवी
बताऊँ क्या कि मिरे दिल में क्या है
अज़ीज़ लखनवी
ऐ दिल ये है ख़िलाफ़-ए-रस्म-ए-वफ़ा-परस्ती
अज़ीज़ लखनवी
हुस्न है दाद-ए-ख़ुदा इश्क़ है इमदाद-ए-ख़ुदा
अज़ीज़ हैदराबादी
नारा-ए-तकबीर भी ज़ाहिद निसार-ए-नग़मा है
अज़ीज़ हैदराबादी
न बदलना था न बदला दिल-ए-शैदा अपना
अज़ीज़ हैदराबादी
माना कि ज़िंदगी में है ज़िद का भी एक मक़ाम
अज़ीज़ हामिद मदनी
ख़ुदा का शुक्र है तू ने भी मान ली मिरी बात
अज़ीज़ हामिद मदनी
तल्ख़-तर और ज़रा बादा-ए-साफ़ी साक़ी
अज़ीज़ हामिद मदनी
नक़्शे उसी के दिल में हैं अब तक खिंचे हुए
अज़ीज़ हामिद मदनी
लिखी हुई जो तबाही है उस से क्या जाता
अज़ीज़ हामिद मदनी
इस गुफ़्तुगू से यूँ तो कोई मुद्दआ नहीं
अज़ीज़ हामिद मदनी
हिकायत-ए-हुस्न-ए-यार लिखना हदीस-ए-मीना-ओ-जाम कहना
अज़ीज़ हामिद मदनी
हवा आशुफ़्ता-तर रखती है हम आशुफ़्ता-हालों को
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़लत-बयाँ ये फ़ज़ा महर ओ कीं दरोग़ दरोग़
अज़ीज़ हामिद मदनी
ज़ौक़-ए-अमल के सामने दूरी सिमट गई
अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़
सुकून-ए-दिल गया नज़रों से सब क़तारे गए
अज़ीम हैदर सय्यद
वो तड़प जाए इशारा कोई ऐसा देना
अज़हर इनायती
ग़मों से यूँ वो फ़रार इख़्तियार करता था
अज़हर इनायती
अज़िय्यत उस की ज़ेहनी दूर कर दे
अज़हर इनायती
वफ़ा ख़ुलूस का सिंगार रोज़ करती है
अज़हर हाश्मी
तस्बीह-ए-कुमरी सर्व-ए-सनोबर समेट लो
अज़हर हाश्मी