Islamic Poetry (page 47)
शहर को आतिश-ए-रंजिश के धुआँ तक देखूँ
अज़हर हाश्मी
ख़ामोश ज़बाँ से जब तक़रीर निकलती है
अज़हर हाश्मी
जो दौलत तरक़्क़ी-रसाई बहुत है
अज़हर हाश्मी
हमेशा वाहिद-ए-यकता बयाँ से गुज़रा है
अज़हर हाश्मी
गुज़रे हुए लम्हात को अब ढूँड रहा हूँ
अज़हर हाश्मी
आज़ुर्दा निगाहों पे ये मंज़र नहीं उतरा
अज़हर हाश्मी
ऐसी ग़ुर्बत को ख़ुदा ग़ारत करे
अज़हर फ़राग़
मैं सोचता हूँ सबक़ मैं ने वो पढ़ा ही नहीं
अज़ीज़ परीहारी
इश्क़ अपना अजब तमाशा है
अज़ीम कुरेशी
वो रूह के गुम्बद में सदा बन के मिलेगा
आज़ाद गुलाटी
कभी मिली जो तिरे दर्द की नवा मुझ को
आज़ाद गुलाटी
एक हंगामा बपा है मुझ में
आज़ाद गुलाटी
वो काफ़िर-निगाहें ख़ुदा की पनाह
आज़ाद अंसारी
बंदा-परवर मैं वो बंदा हूँ कि बहर-ए-बंदगी
आज़ाद अंसारी
ये इक शान-ए-ख़ुदा है मैं नहीं हूँ
आज़ाद अंसारी
कोई न देखे गूँज हवा की
अय्यूब ख़ावर
हरीम-ए-हुस्न से आँखों के राब्ते रखना
अय्यूब ख़ावर
बर्ग-ए-गुल शाख़-ए-हिज्र का कर दे
अय्यूब ख़ावर
इश्क़ क्या है बेबसी है बेबसी की बात कर
औरंगज़ेब
अब कोई और मुसीबत तो न पाली जाए
औरंगज़ेब
कितना मुश्किल है
अतीक़ुल्लाह
हमारे मा-बैन
अतीक़ुल्लाह
अब्बा के नाम
अतीक़ुल्लाह
चराग़ हाथों के बुझ रहे हैं सितारा हर रह-गुज़र में रख दे
अतीक़ुल्लाह
बहुत दिनों में कहीं रास्ते बदलते थे
अतीक़ुल्लाह
फूलों से बहारों में जुदा थे तो हमीं थे
अतहर राज़
मैं तुझे भूलना चाहूँ भी तो ना-मुम्किन है
अतहर नासिक
चुप-चाप हब्स-ए-वक़्त के पिंजरे में मर गया
अतहर नासिक
काश समझदार न बनूँ
अतीया दाऊद
कटी है उम्र यहाँ एक घर बनाने में
अतीक़ मुज़फ़्फ़रपुरी