Islamic Poetry (page 73)
आप ने आज ये महफ़िल जो सजाई हुई है
अफ़ीफ़ सिराज
जो बन-सँवर के वो इक माह-रू निकलता है
अादिल रशीद
उफ़ुक़ की हथेली से सूरज न उभरे
आदिल मंसूरी
नज़्म
आदिल मंसूरी
नज़्म
आदिल मंसूरी
हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद
आदिल मंसूरी
फैले हुए हैं शहर में साए निढाल से
आदिल मंसूरी
होने को यूँ तो शहर में अपना मकान था
आदिल मंसूरी
हज का सफ़र है इस में कोई साथ भी तो हो
आदिल मंसूरी
दूर उफ़ुक़ के पार से आवाज़ के पर्वरदिगार
आदिल मंसूरी
चारों तरफ़ से मौत ने घेरा है ज़ीस्त को
आदिल मंसूरी
मुफ़ाहमत न सिखा जब्र-ए-नारवा से मुझे
अदीम हाशमी
किस हवाले से मुझे किस का पता याद आया
अदीम हाशमी
इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया
अदीम हाशमी
प्यार करते रहो
अदील ज़ैदी
दुकान-दार
अदील ज़ैदी
सहरा-ओ-दश्त-ओ-सर्व-ओ-समन का शरीक था
अदील ज़ैदी
ख़ाली दुनिया में गुज़र क्या करते
अदील ज़ैदी
डराएगी भला क्या तेरी गर्दिश आसमाँ मुझ को
अदील ज़ैदी
मिरे शौक़-ए-जुस्तुजू का किसे ए'तिबार होता
अदीब सहारनपुरी
बख़्शे फिर उस निगाह ने अरमाँ नए नए
अदीब सहारनपुरी
आशोब-ए-आगही
अदा जाफ़री
ये हुक्म है तिरी राहों में दूसरा न मिले
अदा जाफ़री
जब दिल की रहगुज़र पे तिरा नक़्श-ए-पा न था
अदा जाफ़री
आगे हरीम-ए-ग़म से कोई रास्ता न था
अदा जाफ़री
हर एहतिमाम है दो दिन की ज़िंदगी के लिए
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
ज़ब्त कर आह बार बार न कर
अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र
तसव्वुरात में इन को बुला के देख लिया
अबु मोहम्मद वासिल
कारवाँ इश्क़ की मंज़िल के क़रीं आ पहूँचा
अबु मोहम्मद वासिल
हसरत-ए-दीद रही दीद का ख़्वाहाँ हो कर
अबु मोहम्मद वासिल