Islamic Poetry (page 74)
आगे वो जा भी चुके लुत्फ़-ए-नज़ारा भी गया
अबु मोहम्मद वासिल
मर्ज़ी ख़ुदा की क्या है कोई जानता नहीं
अबु मोहम्मद सहर
हिन्दू से पूछिए न मुसलमाँ से पूछिए
अबु मोहम्मद सहर
इश्क़ की सई-ए-बद-अंजाम से डर भी न सके
अबु मोहम्मद सहर
तुम्हारे देखने के वास्ते मरते हैं हम खल सीं
आबरू शाह मुबारक
जो कि बिस्मिल्लाह कर खाए तआम
आबरू शाह मुबारक
इश्क़ की सफ़ मनीं नमाज़ी सब
आबरू शाह मुबारक
डर ख़ुदा सीं ख़ूब नईं ये वक़्त-ए-क़त्ल-ए-आम कूँ
आबरू शाह मुबारक
याद-ए-ख़ुदा कर बंदे यूँ नाहक़ उम्र कूँ खोना क्या
आबरू शाह मुबारक
उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो
आबरू शाह मुबारक
शौक़ बढ़ता है मिरे दिल का दिल-अफ़गारों के बीच
आबरू शाह मुबारक
निपट ये माजरा यारो कड़ा है
आबरू शाह मुबारक
निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है
आबरू शाह मुबारक
नाज़नीं जब ख़िराम करते हैं
आबरू शाह मुबारक
मत मेहर सेती हाथ में ले दिल हमारे कूँ
आबरू शाह मुबारक
ख़ुदा के वास्ते ऐ यार हम सीं आ मिल जा
आबरू शाह मुबारक
कहो तुम किस सबब रूठे हो प्यारे बे-गुनह हम सीं
आबरू शाह मुबारक
इस ज़ुल्फ़-ए-जाँ-गुज़ा कूँ सनम की बला कहो
आबरू शाह मुबारक
हम नीं सजन सुना है उस शोख़ के दहाँ है
आबरू शाह मुबारक
गुनाहगारों की उज़्र-ख़्वाही हमारे साहिब क़ुबूल कीजे
आबरू शाह मुबारक
गली अकेली है प्यारे अँधेरी रातें हैं
आबरू शाह मुबारक
दिल्ली के बीच हाए अकेले मरेंगे हम
आबरू शाह मुबारक
देखो तो जान तुम कूँ मनाते हैं कब सेती
आबरू शाह मुबारक
हम अपनी राह पकड़ते हैं देखते भी नहीं
अबरार अहमद
कि जैसे कुंज-ए-चमन से सबा निकलती है
अबरार अहमद
फ़िक्र का गर सिलसिला मौजूद है
अबरार आबिद
ये कार-ए-ख़ैर है इस को न कार-ए-बद समझो
आबिद मलिक
दश्त में उस का आब-ओ-दाना है
आबिद मलिक
न हो हयात का हासिल तो बंदगी क्या है
आबिद काज़मी
मक़ाम अपना दुनिया में ज़ीशान रख
आबिद काज़मी