Islamic Poetry (page 71)
ग़ैरत-ए-इश्क़ सलामत थी अना ज़िंदा थी
अहमद फ़राज़
दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें
अहमद फ़राज़
चले थे यार बड़े ज़ोम में हवा की तरह
अहमद फ़राज़
चाक-पैराहनी-ए-गुल को सबा जानती है
अहमद फ़राज़
अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है
अहमद फ़राज़
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम
अहमद फ़राज़
मैं तिरी मानता लेकिन जो मिरा दिल है ना
अहमद अता
बिकता रहता सर-ए-बाज़ार कई क़िस्तों में
अहमद अशफ़ाक़
जितनी हम चाहते थे उतनी मोहब्बत नहीं दी
अहमद अशफ़ाक़
ये कैसे बाल खोले आए क्यूँ सूरत बनी ग़म की
आग़ा शायर
चलेगा नहीं मुझ पे फ़ुक़रा तुम्हारा
आग़ा शायर
उन्स अपने में कहीं पाया न बेगाने में था
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
रुख़्सार के परतव से बिजली की नई धज है
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
रोने से जो भड़ास थी दिल की निकल गई
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
न निकला मुँह से कुछ निकली न कुछ भी क़ल्ब-ए-मुज़्तर की
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
मस्कन वहीं कहीं है वहीं आशियाँ कहीं
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
जिस ने तुझे ख़ल्वत में भी तन्हा नहीं देखा
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
गिरी गिर कर उठी पलटी तो जो कुछ था उठा लाई
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
सब कुछ ख़ुदा से माँग लिया तुझ को माँग कर
आग़ा हश्र काश्मीरी
गो हरम के रास्ते से वो पहुँच गए ख़ुदा तक
आग़ा हश्र काश्मीरी
सू-ए-मय-कदा न जाते तो कुछ और बात होती
आग़ा हश्र काश्मीरी
चोरी कहीं खुले न नसीम-ए-बहार की
आग़ा हश्र काश्मीरी
क्या ख़ुदा हैं जो बुलाएँ तो वो आ ही न सकें
आग़ा हज्जू शरफ़
तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए
आग़ा हज्जू शरफ़
तिरे वास्ते जान पे खेलेंगे हम ये समाई है दिल में ख़ुदा की क़सम
आग़ा हज्जू शरफ़
सन्नाटे का आलम क़ब्र में है है ख़्वाब-ए-अदम आराम नहीं
आग़ा हज्जू शरफ़
सलफ़ से लोग उन पे मर रहे हैं हमेशा जानें लिया करेंगे
आग़ा हज्जू शरफ़
रंग जिन के मिट गए हैं उन में यार आने को है
आग़ा हज्जू शरफ़