Love Poetry (page 197)
पर्दा उलट के उस ने जो चेहरा दिखा दिया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
न रहे नामा ओ पैग़ाम के लाने वाले
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
न कोई उन के सिवा और जान-ए-जाँ देखा
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
मिसाल-ए-तार-ए-नज़र क्या नज़र नहीं आता
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
मतलब न काबे से न इरादा कनिश्त का
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
मैं अगर रोने लगूँ रुतबा-ए-वाला बढ़ जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
लाख पर्दे से रुख़-ए-अनवर अयाँ हो जाएगा
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
लब-ए-रंगीं से अगर तू गुहर-अफ़शाँ होता
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
किस तरह मिलें कोई बहाना नहीं मिलता
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
जब अयाँ सुब्ह को वो नूर-ए-मुजस्सम हो जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
गया शबाब न पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
देखी जो ज़ुल्फ़-ए-यार तबीअत सँभल गई
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
चाँद सा चेहरा जो उस का आश्कारा हो गया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
शब-ए-फ़ुर्क़त नज़र आते नहीं आसार-ए-सहर
बर्क़ देहलवी
हिन्द के जाँ-बाज़ सिपाही
बर्क़ देहलवी
ताबिश-ए-हुस्न हिजाब-ए-रुख़-ए-पुर-नूर नहीं
बर्क़ देहलवी
दिल जो सूरत-गर-ए-मअ'नी का सनम-ख़ाना बने
बर्क़ देहलवी
ज़िंदगी की बिसात पर 'बाक़ी'
बाक़ी सिद्दीक़ी
कुछ न पा कर भी मुतमइन हैं हम
बाक़ी सिद्दीक़ी
हम कि शोला भी हैं और शबनम भी
बाक़ी सिद्दीक़ी
बंद कलियों की अदा कहती है
बाक़ी सिद्दीक़ी
वो नज़र आईना-फ़ितरत ही सही
बाक़ी सिद्दीक़ी
वो अंधेरा है जिधर जाते हैं हम
बाक़ी सिद्दीक़ी
वक़्त रस्ते में खड़ा है कि नहीं
बाक़ी सिद्दीक़ी
तिरी निगाह का अंदाज़ क्या नज़र आया
बाक़ी सिद्दीक़ी
सुब्ह का भेद मिला क्या हम को
बाक़ी सिद्दीक़ी
रस्म-ए-सज्दा भी उठा दी हम ने
बाक़ी सिद्दीक़ी
रंग-ए-दिल रंग-ए-नज़र याद आया
बाक़ी सिद्दीक़ी
नद्दी के उस पार खड़ा इक पेड़ अकेला
बाक़ी सिद्दीक़ी